ज्योतिष से जीवन के रहस्य खोलने के लिए जन्म समय के अनुसार कुण्डली बनाना जरूरी होता है, अक्सर कुंडली बनाने के बाद उसके अन्दर भावो के अनुसार ग्रहों का विवेचन कैसे किया जाता है इस बात पर लोग अपने अपने ज्ञान के अनुसार कथन करते है, कई बार तो मैंने देखा है की कुंडली देखते ही कहना शुरू कर देते है की यह बात है इस बात का होना यह बात हुयी है लेकिन जो कुंडली को पूंछने के लिए आया है वह अपनी बात को कह ही नहीं पाया और तब तक दूसरे का नंबर आ गया, अपनी कुंडली को अपने आप जब तक पढ़ना नहीं आयेगा तब तक जीवन के भेद आप अपने लिए नहीं खोल पायेंगे, हर व्यक्ति के लिए तीन बाते जरूरी है की वह अपने समय को पहिचानना सीखे उसके बाद अपनी बात को दूसरे को समझना सीखे और तीसरी बात है की जब दुःख या कष्ट का समय है बीमारी है तो उसका अपने आप ही इलाज करना सीखे।समय को सीखना ज्योतिष कहलाता है और अपनी बात को समझाने की कला को मास्टर के रूप में जाना जाता है तीसरी बात जीवन के अन्दर आने वाली बीमारियों को दूर करने के लिए वैद्य का होना भी जरूरी है, बाकी के काम जो जीवन में अपने लिए जरूरी है वे केवल कमाने खाने के लिए और लोगो के साथ रहने तथा आगे की संतति को चलाने से ही जुड़े होते है।ज्योतिष के अनुसार जब भेद खोले जा सकते है तो क्यों न भेद को खोल कर अपने हित के लिए देखा जाए और जो दिक्कत आने वाली है उसका निराकारण खुद के द्वारा ही कर लिया जाए तो कितना अच्छा होगा।आज कल कुंडली बनाने के लिए ख़ास मेहनत नहीं करनी पड़ती है कुंडली को बनाने के लिए बहुत से सोफ्ट वेयर आ गए उनके द्वारा अपनी जन्म तारीख और समय तथा स्थान के नाम से आप अपनी कुंडली को आसानी से बना सकते है।
उपरोक्त कुंडली में नंबर लिखे हुए और भावो के नाम लिखे है तथा ग्रहों के नाम लिखे हुए है।नंबर राशि से सम्बंधित है जैसे लगन जिस समय जातक का जन्म हुआ था उस समय तीन नंबर की राशि आसमान में स्थान ग्रहण किये हुए थी, एक नंबर पर मेष दूसरे नंबर की वृष तीसरे नंबर की मिथुन चौथे पर कर्क पांचवे पर सिंह छठे नंबर की कन्या सातवे नंबर की तुला आठवे की वृश्चिक नवे की धनु दसवे की मकर ग्यारहवे की कुम्भ और बारहवे नंबर की राशि मीन होती है।इसी प्रकार कसे लगन जो पहले नंबर का भाव होता है उसके अन्दर जो राशि स्थापित होती है वह लगन की राशि कहलाती है जैसे उपरोक्त कुंडली में तीन नंबर की मिथुन राशि स्थापित है।इससे बाएं तरफ देखते है चार नंबर लिखा है, इसी क्रम से भावो का रूप बना हुया होता है।पहले भाव को शरीर से दुसरे को धन से तीसरे को हिम्मत और छोटे भाई बहिनों से चौथे नंबर को माता मन मकान और सुख से पांचवे को संतान शिक्षा और परिवार से छठे भाव को दुश्मनी कर्जा बीमारी से सातवे नंबर के भाव को जीवन साथी पति या पत्नी के लिए आठवे भाव को अपमान मृत्यु जान जोखिम नवे को भाग्य और धर्म न्याय विदेश दसवे को कर्म और धन के लिए किये जाने वाले प्रयास ग्यारहवे को लाभ और बड़े भाई बहिन दोस्त के लिए बारहवे को खर्च और आराम करने वाले स्थान के नाम से जाना जाता है।
ग्रह तीन प्रकार के होते है एक अच्छे दुसरे खराब और तीसरे अच्छे के साथ अच्छे और खराब के साथ खराब।खराब ग्रहों में सूर्य मंगल शनि राहू केतु को माना जाता है अच्छे ग्रहों में चन्द्र बुध शुक्र और गुरु को माना जाता है लेकिन बुध और चन्द्रमा के बारे में माना जाता है की बुध जिस ग्रह के साथ होता है और अधिक नजदीक होने पर वह उसी ग्रह के अनुसार अपने काम करने लगता है तथा चन्द्रमा के बारे में कहा जाता है की वह शुक्र पक्ष की अष्टमी से पूर्णिमा तक बहुत अच्छा होता है तथा कृष्ण पक्ष की अष्टमी से अमावस्या तक बहुत खराब होता है बीच के समय में सामान्य अच्छा या बुरा फल देने वाला होता है।
कुंडली को पढ़ने के लिए सबसे पहले तीन बाते ध्यान में रखनी पड़ती है पहली तो ग्रह का स्थान दूसरा ग्रह के द्वारा कहाँ से प्रभाव लिया जा रहा है तीसरा ग्रह किस ग्रह के साथ बैठ कर क्या फल ग्रहण कर रहा है।इसके अलावा जो पांच बाते इसी के अन्दर आती है उनके अन्दर कुंडली में धन कहा है, कुंडली में खराब स्थान कहाँ है कुंडली में राज योग कहा है, कुंडली में ग्रह एक दूसरे को कहाँ एक दूसरे के बल को ग्रहण कर रहे है, और आखिर में देखा जाता है की कुंडली के अन्दर विशेषता क्या है?
उदाहरण के लिए उपरोक्त कुंडली को देखे, मिथुन लगन की कुंडली है इस लगन का मालिक बुध है, इसी प्रकार से हर राशि का अपना अपना मालिक होता है, जैसे लगन में मिथुन है तो उसका मालिक बुध है धन भाव में कर्क है तो इसका मालिक चन्द्रमा है तीसरे भाव में सिंह राशि है तो इसका मालिक सूर्य है चौथे भाव में कन्या राशि है तो इसका मालिक भी बुध है पंचम भाव में तुला राशि है तो उसका मालिक शुक्र है छठे भाव में वृश्चिक राशि है तो उसका मालिक मंगल है सप्तम में धनु राशि है इसका मालिक गुरु है अष्टम में मकर राशि है तो उसका मालिक शनि है नवे भाव में कुम्भ राशि है तो उसका मालिक भी शनि है दसवे भाव में मीन राशि तो उसका मालिक भी गुरु है लाभ भाव यानी ग्यारहवे भाव में मेष राशि है तो इसका मालिक भी मंगल है, बारहवे यानी खर्च के भाव में वृष राशि है तो उसका मालिक भी शुक्र है, इस प्रकार से सूर्य और चन्द्रमा के अलावा सभी ग्रहों की राशिया दो दो है।इन दो दो राशियों का भी एक गूढ़ है, एक राशि तो केवल सोचने वाली होती है और दूसरे राशि करने वाली होती है, जैसे बुध की मिथुन राशि तो सोचने वाली है और कन्या राशि कार्य को करने वाली है, उसी प्रकार से शुक्र की तुला राशि तो सोचने वाली होती है और वृष राशि करने वाली होती है गुरु की धनु राशि तो करने वाली होती है मीन राशि सोचने वाली होती है शनि की कुम्भ राशि तो सोचने वाली होती है और मकर राशि करने वाली होती है।वैसे चन्द्रमा के बारे में भी कहा जाता है की वह कृष्ण पक्ष में नकारात्मक सोच देता है तो शुक्ल पक्ष में सकारात्मक सोच देता है।सूर्य के बारे में भी कहा जाता है की वह दक्षिणायन यानी देवशयनी एकादशी से देवोत्थानी एकादसी तक नकारात्मक प्रभाव देने वाला होता है और अलावा में सकारात्मक प्रभाव देने वाला होता है।
इस कुंडली में बुध जो लगन का मालिक है वह जातक के बारे में बताता है की जातक धर्म न्याय और क़ानून के घर में है, यानी जातक का जन्म जहां हुआ है वह धर्म न्याय और क़ानून के लिए जाना जाता होगा।इसके अलावा ग्यारहवे भाव में चन्द्रमा है, चन्द्रमा मेष राशि का है मेष राशि पुरुष ग्रह मंगल की राशि है, चन्द्रमा को राहू मंगल का बल लेकर सप्तम भाव से देख रहा है, राहू जिस भाव में जिस ग्रह के साथ होता है उसी का बल प्रदान करता है, राहू ने मंगल का बल लेकर चन्द्रमा को दिया है यानी जातक के कई बहिने है भाई है, राहू अपनी पहिचान नहीं देता है, केवल ग्रहों की पहिचान देता है, मंगल चन्द्र बुध केतु राहू के साथ है यानी राहू ने अपनी पांच दृष्टियों से चार को काम में लिया है।पहली दृष्टि जहां वह विराजमान है, दूसरी वह तीसरी दृष्टि से बुध को देख रहा है पंचम दृष्टि से वह चन्द्रमा को देख रहा है और सप्तम दृष्टि से वह केतु को देख रहा है।जातक के धन भाव को अष्टम स्थान से सूर्य गुरु और शुक्र देख रहे है, सप्तम से मंगल भी देख रहा है।जातक के छोटे भाई बहिनों के घर को बुध देख रहा है जातक के माता मन मकान को अष्टम में विराजमान गुरु देख रहा है, जातक के संतान शिक्षा और परिवार भाव को चन्द्रमा और केतु दोनों देख रहे है।जातक के कर्जा दुश्मनी बीमारी के भाव को बारहवा शनि देख रहा है, जातक के जीवन साथी के भाव में मंगल और राहू विराजमान है तथा केतु भी देख रहा है, जातक के अपमान मृत्यु और जान जोखिम के भाव के अन्दर सूर्य गुरु और शुक्र विराजमान है जातक के नवे भाव में बुध विराजमान है और केतु लगन से तथा बारहवे भाव से शनि की वक्र दृष्टि भी इस भाव पर आ रही है, जातक के कार्य भाव को केवल मंगल देख रहा है, तथा अष्टम का गुरु भी देख रहा है, जातक के लाभ भाव में चन्द्रमा है और चन्द्रमा को राहू मंगल की शक्ति को लेकर देख रहा है, जातक के खर्चे के भाव में शनि विराजमान है साथ ही गुरु अष्टम भाव से इस भाव को देख रहा है।इस प्रकार से ग्रहों की स्थिति और ग्रहों की निगाह को देखा जाता है, मंगल अपने स्थान और अपने स्थान से चौथे भाव में सप्तम भाव में तथा अष्टम भाव में देखता है, गुरु राहू केतु अपने स्थान अपने से तीसरे स्थान पंचम स्थान सप्तम स्थान और नवे स्थान को देखते है, शनि अपने स्थान और अपने स्थान से तीसरे स्थान सप्तम स्थान और दसवे स्थान को देखता है।सूर्य चन्द्र बुध शुक्र केवल अपने से सातवे स्थान को ही देखते है।जो ग्रह द्रश्य स्थान को देखता है उस स्थान पर अपना असर छोड़ता है और उस स्थान का प्रभाव उस ग्रह के अन्दर भी शामिल होता है।छठे भाव के ग्रह कर्जा दुश्मनी बीमारी पालने वाले होते है और ब्याज आदि से खाने वाले होते है, अष्टम के ग्रह गुप्त रूप से परेशान करने वाले होते है और जो भी भाग्य से धर्म से कमाया जाए उसे किसी न किसी रूप से खा जाते है।बारहवे भाव के ग्रह किसी न किसी कारण से खर्च करवाने वाले होते है।लेकिन छः आठ बारह में खराब ग्रह लाभ देने वाले होते है और अच्छे ग्रह परेशान करने वाले होते है।अगर अच्छे ग्रह छः आठ भारह में वक्री हो जाए तो अच्छा फल देने वाले होते है और खराब ग्रह अगर छः आठ बारह में वक्री हो जाए तो और भी खराब हो जाते है।जो ग्रह स्थान परिवर्तन कर लेते है यानी अपनी राशि को छोड़ कर एक दूसरे की राशि में बैठ जाते है वे भी समय पर अपने फलो को बदलाने के लिए माने जाते है।