कुंडली में केतु के अशुभ प्रभाव में होने पर चर्म रोग, मानसिक तनाव, आर्थिक नुक्सान,स्वयं को ले कर ग़लतफहमी, आपसी तालमेल में कमी, बात बात पर आपा खोना, वाणी का कठोर होना व आप्शब्द बोलना, जोड़ों का रोग या मूत्र एवं किडनी संबंधी रोग हो जाता है। संतान को पीड़ा होती है। वाहन दुर्घटना,उदर कस्ट, मस्तिस्क में पीड़ा आथवा दर्द रहना, अपयश की प्राप्ति, सम्बन्ध ख़राब होना, दिमागी संतुलन ठीक नहीं रहता है, शत्रुओं से मुश्किलें बढ़ने की संभावना रहती है।
उपाय : दुर्गा, शिव व हनुमान की आराधना करे। तिल, जौ किसी हनुमान मंदिर में या किसी यज्ञ स्थान पर दान करे। कान छिदवाएँ। सोते समय सर के पास किसी पत्र में जल भर कर रक्खे और सुबह किसी पेड़ में दाल दे,यह प्रयोग 43 दिन करे। इसके साथ हनुमान चालीसा, बजरंग बाण, हनुमानाष्टक, हनुमान बाहुक, सुंदरकांड का पाठ और ॐ कें केतवे नमः का १०८ बार नित्य जाप करना लाभकारी होता है। अपने खाने में से कुत्ते,कौव्वे को हिस्सा दें। तिल व कपिला गाय दान में दें। पक्षिओं को बाजरा दे। चिटिओं के लिए भोजन की व्यस्था करना अति महत्व्यपूर्ण है।
कभी भी किसी भी उपाय को 43 दिन करना चहिये तब ही फल प्राप्ति संभव होती है। मंत्रो के जाप के लिए रुद्राक्ष की माला सबसे उचित मानी गई है। इन उपायों का गोचरवश प्रयोग करके कुण्डली में अशुभ प्रभाव में स्थित ग्रहों को शुभ प्रभाव में लाया जा सकता है। सम्बंधित ग्रह के देवता की आराधना और उनके जाप, दान उनकी होरा, उनके नक्षत्र में अत्यधिक लाभप्रद होते है।