disha suchak yantra vastu

दिशा सूचक यंत्र वास्तु – घर का वास्तु – disha suchak yantra vastu – ghar ka vastu

दिशा सूचक यंत्र वास्तु वास्तु अनुसार दिशा सूचक यन्त्र क्या है
दिक्सूचक (Compass) दिशा का ज्ञान कराने वाला यंत्र है। यह यंत्र महासागरों और मरुस्थलों में दिशा निर्देशन के बहुत काम आता है या उन स्थानों पर भी जहाँ स्थानसूचकों की कमी है। यह माना जाता है कि सबसे पहले दिक्सूचक का आविष्कार चीन के हान राजवंश ने किया था। यह एक बड़ी चम्मच-जैसी चुम्बकीय वस्तु थी, जो काँसे की तस्तरी पर मैग्नेटाइट अयस्क को बिठा कर बनाई गई थी। दिक्सूचक का प्राथमिक कार्य एक निर्देश दिशा की ओर संकेत करना है, जिससे अन्य दिशाएँ ज्ञात की जाती हैं। ज्योतिर्विदों और पर्यवेक्षकों के लिए सामान्य निर्देश दिशा दक्षिण है एवं अन्य व्यक्तियों के लिए निर्देश दिशा उत्तर है।
पुराने ज़माने में लोग दिशाओं को जांचने के लिए सूर्य के प्रकाश से बनने वाली परछाइयों को बहुत बारीकी से देखा करते थें | अब दिशाओं को जानने के लिए दिशा सूचक यंत्र का प्रयोग किया जाता हैं | हालाकिं दिशाएं कुल मिला कर 10 होती है | लेकिन दिशा सूचक यंत्र केवल 8 दिशाओं की ही जानकारी दे सकता है |
दिशा सूचक यंत्र कुल 360 अंश का होता है | जिसकी त्रिज्या हर 45 अंश पर अगली दिशा में पहुँच जाती है | प्रत्येक दिशा के भीतर अंशो के स्तर को जांचना भी वास्तु का एक महत्वपूर्ण आयाम है |
दिशाएं कुल मिला कर 10 होती है | 1. उत्तर 2. दक्षिण 3. पूर्व और 4. पश्चिम ये चार मुख्य दिशाएं है | इनके अलावा चार उपदिशाएं है | जो मुख्य दिशाओं के बिच पड़ने वाले कोनो को दर्शाती है | ये उपदिशाएं है- 5. उत्तर और पूर्व के बीच ( ईशान कोण ) 6. दक्षिण और पूर्व के बीच (आग्रेय कोण ) 7. दक्षिण और पश्चिम के बीच ( नैऋत्य कोण ) 8. उत्तर और पश्चिम के बीच (वायव्य कोण ) 9. आकाश 10. पाताल
उत्तर
दक्षिण
पूर्व
पश्चिम
उत्तर और पूर्व के बीच ( ईशान कोण )
दक्षिण और पूर्व के बीच (आग्रेय कोण )
दक्षिण और पश्चिम के बीच ( नैऋत्य कोण )
उत्तर और पश्चिम के बीच (वायव्य कोण ) दिक्सूचक के प्रकार
दिक्सूचक मुख्यत: चार प्रकार के होते हैं –
चुंबकीय दिक्सूचक (Magnetic Compass) – यह निदेशक बल प्राप्त करने के लिए पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र पर निर्भर करता है।
घूर्णदर्शीय दिक्सूचक (Gyroscopic Compass) – यह पृथ्वी के घूर्णन से अपना निदेशक बल प्राप्त करता है।
रेडियो दिक्सूचक (Radio Compass) – इसकी कार्यप्रणाली बेतार सिद्धांत पर आधारित है।
सूर्य अथवा तारा दिक्सूचक (Solar or Astral compass) – इसका उपयोग सूर्य अथवा किसी तारे के दृष्टिगोचर होने पर निर्भर करता है।”

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