vastu dosh nivaran yantra.

वास्तु दोष निवारक यन्त्र। – वास्तुशास्त्र – vastu dosh nivaran yantra. – vastu shastra

सिद्ध गणपति स्थापना।
पिरामिड यन्त्र। ४दृ हरे पौधे।
५दृ दर्पण।
६दृ प्रकाश।
७दृ शुभ चिन्ह।
८दृ जल।
९दृ क्रिस्टल बाल।
१०दृ रंग।
११दृ घंटी।
१२दृ बांसुरी ।
१३दृ स्वास्तिक यन्त्र।
१४दृ वास्तुशांति हवन।
१५दृ मीन।
१६दृ शंख।
१७दृ अग्निहोत्र।
हमारे पहले वास्तु दोषों को समझना होगा ये निम्न प्रकार के होते हैं :-
१दृ भूमि दोष :- भूमि का आकार, ढ़लान उचित न होगा। भूखण्डकी स्थिति व शल्य दोष इत्यादि।
२दृ भवन निर्माण दोष :- पूजा घर, नलकूप, (जल स्त्रोत), रसोई घर, शयनकक्ष, स्नानघर, शौचालय इत्यादि का उचित स्थान पर न होना।
३दृ भवन साज-सज्जा दोष :- साज-सज्जा का सामान व उचित चित्र सही स्थान पर न रखना।
४दृ आगुन्तक दोष :- यह नितांत सत्य है कि आगुन्तक दोष भी कभी-२ आदमी की प्रगति में बाघा उत्पन्न करता है वह उसको हर तरह से असहाय कर देता है। इस दोष से बचने हेतु मुख्य द्वार पर सिद्ध गणपति की स्थापना की जा सकती है। उपरोक्त दोषों को किसी भी वास्तु शास्त्री से सम्पर्क कर आसानी से जाना जा सकता है।
वास्तुदोष मूल निवारक
वास्तुदोष निवारक यन्त्र :- वास्तु दोषों के विभिन्न दिशाओं में होने से उससे सम्बन्धित यन्त्र उपयोग में लाकर उन दोषों का निवारण किया जा सकता है। इस बात का पूरा ध्यान रखना चाहिए कि यन्त्र जानकर व्यक्ति द्वारा विधि पूर्वक बनाये गये हों व उनकी शुद्धि भी कर ली गई हो। यन्त्र का उपयोग किसी भी जानकर वास्तुशास्त्री से सलाह लेकर विधि पूर्वक करना चाहिए।
मुख्य यन्त्र :-
पूर्व में दोष होने पर – सूर्य यन्त्र पूर्व की तरफ स्थापित करें।
पश्चिम में दोष होने पर – वरूण यन्त्र या चन्द्र यन्त्र पूजा में रखें।
दक्षिण में दोष होने पर – मंगल यन्त्र पूजा में रखें।

उत्तर में दोष होने पर – बुध यन्त्र पूजा में रखें।
ईशान में दोष होने पर – ईशान में प्रकाश डालें व तुलसी का पौधा रखें। पूजा में
गुरू यन्त्र रखें।
आग्नेय में दोष होने पर – प्रवेश द्वार पर सिद्ध गणपति की स्थापना एवं शुक्र यन्त्र
पूजा में रखें।
नैरूत में दोष होने पर – राहु यन्त्र पूजा में स्थापित करें।
वायव्य में दोष होने पर – चन्द्र यन्त्र पूजा में रखें।
उपरोक्त के अलावा अन्य भी कई यन्त्र हैं, जैसे व्यापार वृद्धि यन्त्र, वास्तुदोष नाशक यन्त्र, श्री यन्त्र इत्यादि। वास्तुदोष नाशक यन्त्र को द्वार पर लगाया जा सकता है। भूमि पूजन के समय भी चांदी के सर्प के साथ वास्तु यन्त्र गाड़ा जाना बहुत फलदायक होता है।
विभिन्न प्रकार के आवासीय कक्ष
आधुनिक जीवन के आवासीय भवनो में अनेक प्रकार के कक्षों – रसोईघर, शौचालय, शयन कक्ष, पूजाघर, अन्न भण्डार, अध्ययन कक्ष, स्वागत कक्ष आदि का अपना-अपना महत्वपूर्ण स्थान होता है। ऐसे में इन कक्षों आदि को किस दिशा में बनाना उपयोगी होगा – यह भी जानना अति आवश्यक है।
स्थान निर्धारण –
अब हम विभिन्न आवश्यक कक्षों का निर्धारण उनकी दिशा-विदिशा सहित निम्नवत् सारिणी द्वारा प्रस्तुत कर रहे हैं –
कक्षों के नाम वास्तु सम्मत दिशा एवं कोण
रसोईघर आग्नेय कोण में
शयन कक्ष दक्षिण दिशा में
स्नानघर पूर्व दिशा में
भोजन कराने का स्थान पश्चिम दिशा में
पूजाघर ईशान कोण में
शौचालय नैर्ऋत्य कोण में
भण्डार घर उत्तर दिशा में
अध्ययन कक्ष नैर्ऋत्य कोण एवं पश्चिम दिशा के बीच
स्वागत कक्ष या बैठक पूर्व दिशा में
पशुघर वायव्य कोण में
तलघर या बेसमेंट पूर्व या उत्तर दिशा में
चौक भवन के बीच में
कुआं पूर्व, पश्चिम, उत्तर एवं ईशान कोण में
घृत-तेल भण्डार दक्षिणी आग्नेय कोण में
अन्य वस्तु भण्डार दक्षिण दिशा में
अन्न भण्डार पश्चिमी वायव्य कोण में
एकांतवास कक्ष पश्चिमी वायव्य कोण में
चिकित्सा कक्ष पूर्वी ईशान कोण में
कोषागार उत्तर दिशा

वास्तु दोष निवारक यन्त्र। – vastu dosh nivaran yantra. – वास्तुशास्त्र – vastu shastra

 

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