किसी जातक के गोचर में गुरु नीच, वक्री व निर्बल हो तथा कुंडली में छठे, सातवें व दसवें भाव में स्थित हो तो मान-सम्मान में कमी, अधूरी दक्षिणा, गंजापन, झूठे आरोप, पीलिया आदि जैसे रोग व समस्याएं उत्पन्न हो जाती हैं।
क्या उपाय करें : माथे पर नित्य हल्दी अथवा केसर का तिलक करें। पीपल का वृक्ष लगाएं तथा केसर का तिलक करें। दरिया में गंधक प्रवाहित करें। ब्राह्मण को पीले रंग की वस्तु दान में दें।