ज्येष्ठा आश्लेषा और रेवती,मूल मघा और अश्विनी यह नक्षत्र मूल नक्षत्र कहलाये जाते है,इन नक्षत्रों के अन्दर पैदा होने वाला जातक किसी न किसी प्रकार से पीडित होता है,ज्येष्ठा के मामले में कहा जाता है,कि अगर इन नक्षत्र को शांत नही करवाया गया तो यह जातक को तुरत सात महिने के अन्दर से दुष्प्रभाव देना चालू कर देता है। अगर किसी प्रकार से जातक खुद बडा है,तो माता पिता को अलग कर देता है,और खुद छोटा है,तो अपने से बडे को दूर कर देता है,या अन्त कर देता है। यही बात अश्लेशा नक्षत्र के बारे मे कही जाती है कि अगर पहले पद मे जन्म हुया है तो माता को त्याग देता है,दूसरे पाये में पिता को त्याग देता है,तीसरे पाये में अपने बडे भाई या बहिन को और चौथे पाये मे अपने को ही सात दिन,सात महिने,सात साल के अन्दर सभी प्रभावों को दिखा देता है।
mool sangyak nakshatr aur unaka prabhaav – मूल संज्ञक नक्षत्र और उनका प्रभाव – मूल संज्ञक नक्षत्र और उनका प्रभाव – Original nounal constellation and their effects