महाकवि कालिदास और महर्षि वशिष्ठ अनुसार तीन-तीन चंद्रमासों में वास्तु पुरुष की दिशा निम्नवत् रहती है।
भाद्रपद, कार्तिक, आश्विन मास में ईशान की ओर। फाल्गुन, चैत्र, वैशाख में नैत्य की ओर। ज्येष्ठ, आषाढ, श्रावण में आग्नेय कोण की ओर।
मार्गशीर्ष, पौष, माघ में वायव्य दिशा की ओर वास्तु पुरुष का मुख होता है। वास्तु पुरुष का भ्रमण ईशान से बायीं ओर अर्थात् वामावर्त्त होता है।
वास्तु पुरुष के मुख पेट और पैर की दिशाओं को छोड़कर पीठ की दिशा में अर्थात् चौथी, खाली दिशा में नींव की खुदाई शुरु करना उत्तम रहता है।
महर्षि वशिष्ठ आदि ने जिस वास्तु पुरुष को ‘वास्तुनर’ कहा था, कालांतर में उसे ही शेष नाग, सर्प, कालसर्प और राहु
की संज्ञा दे दी गई। अतः पाठक इससे भ्रमित न हों। मकान की नीवं खोदने के लिए सूर्य जिस राशि में हो उसके अनुसार राहु
या सर्प के मुख, मध्य और पुच्छ का ज्ञान करते हैं। सूर्य की राशि जिस दिशा में हो उसी दिशा में, उस सौरमास राहु
रहता है। जैसा कि कहा गया है- ”यद्राशिगोऽर्कः खलु तद्दिशायां, राहुः सदा तिष्ठति मासि मासि।” यदि सिंह,
कन्या, तुला राशि में सूर्य हो तो राहु का मुख ईशान कोण में और पुच्छ नैत्य कोण में होगी और आग्नेय कोण खाली रहेगा। अतः उक्त
राशियों के सूर्य में इस खाली दिशा (राहु पृष्ठीय कोण) से खातारंभ या नींव खनन प्रारंभ करना चाहिए। वृश्चिक, धनु, मकर
राशि के सूर्य में राहु मुख वायव्य कोण में होने से ईशान कोण खाली रहता है। कुंभ, मीन, मेष राशि के सूर्य में राहु मुख नैत्य कोण
में होने से वायव्य कोण खाली रहेगा। वृष, मिथुन, कर्क राशि के सूर्य में राहु का मुख आग्नेय कोण में होने से नैत्य
दिशा खाली रहेगी। उक्त सौर मासों में इस खाली दिशा (कोण) से ही नींव खोदना शुरु करना चाहिए। अब एक प्रश्न उठता है
कि हम किसी खाली कोण में गड्ढ़ा या नींव खनन प्रारंभ करने के बाद किस दिशा में खोदते हुए आगे बढ़ें? वास्तु पुरुष या सर्प
का भ्रमण वामावर्त्त होता है। इसके विपरीत क्रम से- बाएं से दाएं/दक्षिणावर्त्त/क्लोक वाइज नीवं की खुदाई करनी चाहिए।
यथा आग्नेय कोण से खुदाई प्रारंभ करें तो दक्षिण दिशा से जाते हुए नैत्य कोण की ओर आगे बढ़ें। विश्वकर्मा प्रकाश में
बताया गया है- ‘ईशानतः सर्पति कालसर्पो विहाय सृष्टिं गणयेद् विदिक्षु। शेषस्य वास्तोर्मुखमध्य -पुछंत्रयं परित्यज्यखनेच्चतुर्थम्॥’
वास्तु रूपी सर्प का मुख, मध्य और पुच्छ जिस दिशा में स्थित हो उन तीनों दिशाओं को छोड़कर चौथी में नींव खनन आरंभ
करना चाहिए। इसे हम निम्न तालिका के मध्य से आसानी से समझ सकते हैं।
चंद्रमासों में वास्तु – chandrahasan mein vastu – सम्पूर्ण वास्तु दोष – sampurna vastu dosh nivaran