कई वर्षों के सफल वास्तु परामर्श के अनुभवों के बाद मैंने पाया है कि दुनिया के किसी भी कोने में, जीवन के किसी भी क्षेत्र में, कोई सफल है तो उसका निवास स्थान या व्यावसायिक स्थल वास्तु अनुरूप अवश्य होता है। यदि वहां थोड़ा सा भी वास्तु दोष होता है तो उस वास्तु दोष से होने वाले कुप्रभाव को उन्हें अपने जीवन में अवश्य भुगतना भी पड़ता है।
आम लोगों में भ्रांति है कि, वास्तु अनुरूप भवन निर्माण करना बहुत महंगा होता है, जगह बर्बाद होती है। परंतु यह बात पूर्णतः गलत है। सच तो यह है कि, वास्तु अनुरूप भवन बनाना सस्ता पड़ता है और जगह की बर्बादी बिलकुल ही नहीं होती है। देखा जाए तो एक-एक इंच जगह का उपयोग सही तरीके से होता है। वास्तु अनुरूप छोटा मकान भी बड़ा-बड़ा व खुला हुआ नजर आता है।
वास्तु का सम्पूर्ण लाभ लेने के लिए कईं सिद्धांतों के बारे में विभिन्न टी. वी. चैनलों पर, अखबारों में, किताबों में, पत्रिकाओं में जानकारी दी जाती है। उनमें बताये गये सभी सिद्धांतों का पालन कर पाना सब के लिये संभव नहीं होता है। ऐसे में मेरा आपसे अनुरोध है कि सुखद एवं सफल जीवन के लिए कम से कम नीचे लिखे वास्तु के मात्र तीन महत्वपूर्ण सिद्धांतो का अनुसरण करें। इन तीनों का महत्त्व इस प्रकार समझें कि, जैसे परीक्षा में 100 अंक का प्रश्न पत्र है तो, यह तीन अनिवार्य प्रश्न 20-20 अंक के हैं, बाकि सब प्रश्न 1-1, 2-2 अंक के हैं। इस प्रश्न पत्र में एक विशेष बात ध्यान देने योग्य है कि, यदि तीनों में से किसी भी एक प्रश्न का उत्तर गलत है तो, उसका ऋणात्मक मूल्यांकन हो जाता है।
इसकी महत्वता को आप इस प्रकार भी समझ सकते है जैसे यदि किसी की आंख कमजोर हो जाए तो चश्में की सहायता से काम चलाया जा सकता है। दांतों में तकलीफ हो तो नये दांत लगवा सकते है। कानों से कम सुनाई दे तो ईयर फोन उपयोग कर सकते है। पैर कट जाए तो बैसाखी के सहारे जीवन जी सकते है। किंतु शरीर के तीन प्रमुख अंग हार्ट, लग्स और लीवर के बिना जीवन जीना संभव ही नहीं है। जैसे स्वस्थ्य रहने के लिए भारतीय योग में कई प्रकार के आसन बताए गए है और विभिन्न शारीरिक व्याधियों के लिए कुछ विशेष आसन भी है परंतु, प्रत्येक के लिए सभी आसनों को कर पाना ना तो जरूरी नहीं होता और ना हीं संभव होता है। ऐसे में विद्वान योगाचार्यों के अनुसार यदि कोई व्यक्ति प्राणायाम, अनुलोम-विलोम, कपाल-भारती इन तीनों योग क्रिया को नियमित करता है तो निश्चित ही वह स्वस्थ्य रहता है और यदि वह अस्वस्थ्य हो तो स्वस्थ्य हो जाता है। उसी प्रकार यदि किसी घर में वास्तु के इन तीन सिद्धांतों का पालन किया जाए तो यह तय कि, उस घर में रहने वाले परिवार के सभी सदस्यों का जीवन सुखद, सरल एवं समृद्धशाली होगा।
1. चारदीवारी एवं भवन का मुख्य द्वार पूर्व ईशान, दक्षिण आग्नेय, पश्चिम वायव्य और उत्तर ईशान में कहीं भी रखा जा सकता है परंतु द्वार कभी भी पूर्व आग्नेय, दक्षिण नैऋत्य, पश्चिम नैऋत्य या उत्तर वायव्य में नहीं होना चाहिए। विशेष – दक्षिण नैऋत्य या पश्चिम नैऋत्य में किसी भी स्थिति में प्रवेश द्वार नहीं होना चाहिए।
2. भवन में भूमिगत पानी का स्रोत जैसे कुआं, बोरवेल, टंकी, सैप्टिक टैंक इत्यादि या अन्य किसी भी प्रकार का गड्डा, जमीन व फर्श का ढाल केवल उत्तर, ईशान व पूर्व दिशा में ही होना चाहिए। इसके अलावा किसी और दिशा में नहीं होना चाहिए। सैप्टिक टैंक ईशान कोण में कभी नहीं बनाना चाहिए। सैप्टिक टैंक मध्य उत्तर या मध्य पूर्व दिशा में बनाना चाहिए।
3. किसी भी प्लाट या भवन का ईशान कोण NE ढका, दबा, कटा, घटा, गोल नहीं होना चाहिए और नैऋत्य कोण SW कभी बढ़ा हुआ नहीं होना चाहिए।
किसी भवन के वास्तु में चाहे वह घर, व्यवसायिक स्थल या उद्योग हो सिर्फ इन तीन सिद्धांतों का पालन कर लिया जाए तो यकीन मानिए की आपका वास्तु प्रथम श्रेणी में आ सकता है और ऐसे स्थानों का उपयोग करने वाले सुखद, सरल एवं समृद्धिपूर्ण जीवन व्यतीत करते है।
यदि किसी भवन में उपरोक्त तीनों में से कोई भी एक वास्तु दोष है, तो निश्चित है कि उसमें रहने वालों का जीवन सुखद हो ही नहीं सकता। यदि आज किसी का भाग्य प्रबल है, तो हो सकता है उसे अभी अहसास न हो, पर जब भाग्य साथ देना बंद करेगा, तब यह वास्तु दोष उसके जीवन में दुःखद एवं भयंकर परेशानियां पैदा कर सकते हैं।
ध्यान रहे वास्तुशास्त्र एक विज्ञान है। वास्तुदोष होने पर उनका निराकरण केवल वैज्ञानिक तरीके से ही करना चाहिए और उसका एकमात्र तरीका भवन की बनावट के वास्तुदोषों को दूर किया जाए। बनावट में परिवर्तन नहीं करते हुए आप चाहे घर में कितने ही पिरामिड, श्रीयंत्र, घंटियां, क्रिस्टल बॉल या अन्य फेंग शुई की सामग्री लगा लें, वास्तु शांति करा लें, पूजा-पाठ, टोने-टोटके, यंत्र, तंत्र, मंत्र का उपयोग कर लें, सब समय व पैसा बर्बाद करने वाली बातें हैं।
वास्तुशास्त्र के अतिमहत्वपूर्ण 3 सिद्धांत – vaastushastra ke ati mahatvpurn 3 siddhant – वास्तुशास्त्र – vastu shastra