vastu shastra ke mool siddhant

वास्तुशास्त्र के मूल सिद्धांत – वास्तुशास्त्र – vastu shastra ke mool siddhant – vastu shastra

हमारे ऋषियों का सारगर्भित निष्कर्ष है, ‘यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे।’ जिन पंचमहाभूतों से पूर्ण ब्रह्मांड संरचित है उन्हीं तत्वों से हमारा शरीर निर्मित है और मनुष्य की पांचों इंद्रियां भी इन्हीं प्राकृतिक तत्वों से पूर्णतया प्रभावित हैं। आनंदमय, शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन के लिए शारीरिक तत्वों का ब्रह्मांड और प्रकृति में व्याप्त पंचमहाभूतों से एक सामंजस्य स्थापित करना ही वास्तुशास्त्र की विशेषता है।
वास्तुशास्त्र जीवन के संतुलन का प्रतिपादन करता है। यह संतुलन बिगड़ते ही मानव एकाकी और समग्र रूप से कई प्रकार की कठिनाइयों और समस्याओं का शिकार हो जाता है। वास्तुशास्त्र के अनुसार पंचमहाभूतों- पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि और आकाश के विधिवत उपयोग से बने आवास में पंचतत्व से निर्मित प्राणी की क्षमताओं को विकसित करने की शक्ति स्वत: स्फूर्त हो जाती है।

पृथ्वी मानवता और प्राणी मात्र का पृथ्वी तत्व (मिट्टी) से स्वाभाविक और भावनात्मक संबंध है। पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। इसमें गुरूत्वाकर्षण और चुम्बकीय शक्ति है। यह वैज्ञानिक रूप से सिद्ध है कि पृथ्वी एक विशालकाय चुम्बकीय पिण्ड है। एक चुम्बकीय पिण्ड होने के कारण पृथ्वी के दो ध्रुव उत्तर और दक्षिण ध्रुव हैं। पृथ्वी पर रहने वाले सभी प्राणी, सभी जड़ और चेतन वस्तुएं पृथ्वी के गुरूत्वाकर्षण से प्रभावित होते हैं। जिस प्रकार पृथ्वी अनेक तत्वों और अनेक प्रकार के खनिजों जैसे लोहा, तांबा, इत्यादि से भरपूर है उसी प्रकार हमारे शरीर में भी अन्य धातुओं के अलावा लौह धातु भी विद्यमान है। कहने का तात्पर्य है कि हमारा शरीर भी चुम्बकीय है और पृथ्वी की चुम्बकीय शक्ति से प्रभावित होता है। वास्तु के इसी सिद्धांत के कारण यह कहा जाता है कि दक्षिण की ओर सिर करके सोना चाहिए। इस प्रकार सोते समय हमारा शरीर ब्रह्मांड से अधिक से अधिक शक्ति को ग्रहण करता है और एक चुम्बकीय लय में सोने की स्थिति से मनुष्य अत्यंत शांतिप्रिय नींद को प्राप्त होता है और सुबह उठने पर तरोताजा महसूस करता है।
वास्तुशास्त्र में पृथ्वी (मिट्टी) का निरीक्षण, भूखण्ड का निरीक्षण, भूमि आकार, ढलान और आयाम आदि का ध्यान रखना अत्यंत आवश्यक है। मात्र पृथ्वी तत्व ही एक ऐसा विशेष तत्व है, जो हमारी सभी इंद्रियों पर पूर्ण प्रभाव रखता है।

जल
पृथ्वी तत्व के बाद जल तत्व अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व है। इसका संबंध हमारी ग्राह्य इंद्रियों, स्वाद, स्पर्श, दृष्टि और श्रवण से है। मानव के शरीर का करीब सत्तर प्रतिशत भाग जल के रूप में और पृथ्वी का दो तिहाई भाग भी जल से पूर्ण है। पुरानी सभ्यताएं अधिकतर नदियों और अन्य जल स्त्रोतों के समीप ही बसी होती थी। वास्तुशास्त्र जल के संदर्भ में भी अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है, जैसे कि कुएं, तालाब या हैडपंप की खुदाई किस दिशा में होनी चाहिए, स्वच्छ और मीठा पानी भूखंड के किस दिशा में मिलेगा, नगर को या घर को पानी के स्त्रोत के सापेक्ष में किस दिशा में रखा जाए या पानी की टंकी या जल संग्रहण के साधन को किस स्थान पर स्थापित किया जाए इत्यादि। पानी के भंडारण के अलावा पानी की निकासी, नालियों की बनावट, सीवर और सेप्टिक टैंक इस प्रकार से रखे जाएं, जिससे जल तत्व का गृहस्थ की खुशहाली से अधिकतम सामंजस्य बैठे।

अग्नि
सूर्य अग्नि तत्व का प्रथम द्योतक है। सूर्य संपूर्ण ब्रह्मांड की आत्मा है, क्योंकि सूर्य उर्जाऔर प्रकाश दोनों का सबसे महत्वपूर्ण स्त्रोत है। रात्रि और दिन का उदय होना और ऋतुओं का परिवर्तन सूर्य के संदर्भ में पृथ्वी की गति से ही निर्धारित होता है। अग्नितत्व हमारी श्रवण, स्पर्श और देखने की शक्ति से संबंध रखता है। सूर्य के बिना जीवन की कल्पना भी असंभव है। सूर्य की ऊर्जा रश्मियां और प्रकाश सूर्योदय से सूर्यास्त तक पल-पल बदलता है। उषाकाल का सूर्य सकारात्मक शक्तियों का प्रतीक है और आरोग्य वृद्धि करता है। भवन का पूर्व दिशा में नीचा रहना और अधिक खुला रहना सूर्य की इन प्रभावशाली किरणों को घर में निमंत्रित करता है। इसी प्रकार दक्षिण-पश्चिम में ऊंचे और बड़े निर्माण दोपहर बाद के सूर्य की नकारात्मक और हानिकारक किरणों के लिए अवरोधक हैं।
सूर्य की किरणों का विभाजन (7+2) नौ रंगों में किया जा सकता है। सर्वाधिक उपयोगी पूर्व में उदित होने वाली परा-बैगनी किरणें हैं, जिसका ईशान कोण से सीधा संबंध है। इसके बाद सूर्य के रश्मि-जाल में बैगनी, गहरी नीली, नीली, हरी, पीली, संतरी, लाल तथा दक्षिण-पूर्व में रक्ताभ किरणों में विभक्त किया जा सकता है। सूर्य रश्मिजाल के परा-बैगनी और ठंडे रंग स्वास्थ्य पर अत्यंत लाभदायक और शुभ प्रभाव छोड़ते हैं। इसलिए ईशान कोण में अधिक से अधिक जगह खाली रखी जानी चाहिए। जब इन किरणों का संबंध जल से होता है, तो यह और भी बेहतर है। इसलिए पानी के भंडारण के लिए ईशान कोण का प्रयोग करने का सुझाव दिया जाता है।
उत्तरपूर्व में दीवार बनाना या इस तरफ शौचालय इत्यादि बनाना भी भवन की सबसे पवित्र दिशा को दूषित करता है। इस दोष से इस दिशा का सही उपयोग और लाभ नहीं मिल पाता, बल्कि घर में कलह और बीमारी के करण बन सकते हैं।
उषाकाल के सूर्य की परा-बैगनी किरणें शरीर के मेटाबॉलिज़्म को संतुलित रखते हैं। भारतीय जीवन में सूर्य नमस्कार और सुबह सूर्य को जल चढ़ाने जैसे उपाय परा-बैगनी किरणों के शुभ प्रभावों में वृद्धि करने वाले होते हैं। सूर्य की किरणें जल में से पारदर्शित होकर और भी सशक्त और उपयोगी हो जाती हैं।
दोपहर बाद और शाम के सूर्य की रक्ताभ किरणें स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं और इनका बहिष्कार अति उत्तम है। वास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा में ऊंचे और बड़े वृक्ष लगाए जाने चाहिए, जिससे दूषित किरणों से बचाव हो सके या यह किरणें परावर्तित हो सके।

वायु
वायु जीवन के लिए अत्यंत उपयोगी तत्व है। वायु का हमारी श्रवण और स्पर्श इंद्रियों से सीधा संबंध है। पृथ्वी और ब्रह्मांड में स्थित वायु नाइट्रोजन, ऑक्सीजन, हाइड्रोजन और हीलियम जैसी गैसों का सम्मिश्रण है। जीवन के लिए इन सभी गैसों की सही प्रतिशतता, सही वायुमंडलीय दबाव और आर्द्रता का सही अनुपात होना आवश्यक है। वास्तुशास्त्र में जीवनदायिनी वायु के शुभ प्रभाव के लिए दरवाज़े, खिड़कियां, रोशनदानों, बालकनी और ऊंची दीवारों को सही स्थान और अनुपात में रखना बहुत आवश्यक है। इसी के साथ घर के आसपास लगे पेड़ और पौधे भी वायुतत्व को संतुलित करने में अत्यंत महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

आकाश
वास्तुशास्त्र में आकाश को एक प्रमुख तत्व की संज्ञा दी गई है। पाश्चात्य निर्माण कला में अभी तक आकाश को एक प्रमुख तत्व की मान्यता नहीं दी गई थी, इसलिए वास्तुशास्त्र आधुनिक और प्राचीन निर्माण कला में सबसे श्रेष्ठ है। आकाश अनंत और असीम है, इसका संबंध हमारी श्रवण शक्ति से है। एक घर में आकाश तत्व की महत्ता घर के मध्य में होती है। घर में प्रकाश और ऊर्जा के स्वछंद प्रवाह के लिए इसे हवादार और मुक्त रखा जाना चाहिए। आकाश तत्व में अक्रोधकता घर या कार्य स्थल में वृद्धि में बाधक हो सकती है। घर या फैक्ट्री को या उसमें रखे सामान को अव्यवस्थित ढंग से रखना आकाश तत्व को दूषित करना है। मकान में अपनी ज़रूरत से अधिक अनावश्यक निर्माण और फिर उन फ्लोर या कमरों को उपयोग में न लाना, बेवजह के सामान से कमरों को ठूंसे रखना भवन के आकाश तत्व को दूषित करता है। नकारात्मक शक्तियों के दुष्प्रभाव से बचने के लिए सुझाव है कि भवन में उतना ही निर्माण करें जितना आवश्यक हो।
वास्तुशास्त्र भवन में पंचमहाभूतों का सही संतुलन और सामंजस्य पैदा कर घर के सभी सदस्यों के लिए सौहार्दपूर्ण वातावरण पैदा करता है। आजकल घरों में साज-सज्जा के बेहतरीन नमूने और अत्याधुनिक उपकरणों की कोई कमी नहीं पाई जाती। अगर कमी होती है, तो प्राकृतिक प्रकाश, वायु और पंचतत्वों के सही संतुलन की। एक घर में सही स्थान पर बनी एक बड़ी खिड़की की उपयोगिता कीमती और अलंकृत साजसज्जा से कहीं ज्यादा है।

वास्तुविद्या मकान को एक शांत, सुसंस्कृत और सुसज्जित घर में तब्दील करती है। यह घर परिवार के सभी सदस्यों को एक हर्षपूर्ण, संतुलित और समृद्धि जीवन शैली की ओर ले जाता है।

वास्तुशास्त्र के मूल सिद्धांत – vastu shastra ke mool siddhant – वास्तुशास्त्र – vastu shastra

 

Tags: , , , , , , ,

Leave a Comment

Scroll to Top