वास्तु शास्त्र पुस्तक

vaidik vastu shastra kee bhoomika

वैदिक वास्तु शास्त्र की भूमिका – वैदिक वास्तु शास्त्र – vaidik vastu shastra kee bhoomika – vedic vastu shastra

वास्तु शास्त्र की भूमिका ओम प्रकाश दार्शनिक आज मानवीय सृष्टि में जो कुछ भी और जैसे भी हो रहा है, वह यदि अवांछित ढंग से न होकर विधि सापेक्ष रूप में हो तो निश्चित ही बहुत से अमंगल टल सकते हैं! वास्तुशास्त्र इस मांगल्य की स्थापना में हमारा सहायक अथवा मार्गदर्शक हो सकता है! भली-भांति […]

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vaidik kal darpan vaastu

वैदिक काल दर्पण वास्‍तु – वैदिक वास्तु शास्त्र – vaidik kal darpan vaastu – vedic vastu shastra

वातावरण में व्‍याप्‍त सकारात्‍म्‍क ऊर्जाओं का उपयोग एवं नकारात्‍मक ऊर्जाओं का प्रतिरोध ही वास्‍तु है! दर्पण के द्वारा भी इन ऊर्जाओं को प्राप्‍त किया जा सकता है! इस पुस्‍तक में दर्पणों के सकारात्‍मक एवं नकारात्‍मक उपयोगों का सचित्र वर्णन किया गया है सकारात्‍मक उपयोग जीवन में लाभकारी एवं नकारात्‍मक उपयोग हानिकारक सिद्ध हो सकते हैं!

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vastu shastra kee vyaakhya

वास्तुशास्त्र की ब्याख्या – वैदिक वास्तु शास्त्र – vastu shastra kee vyaakhya – vedic vastu shastra

वास्तुशास्त्र भवन निर्माण की एक अदभुत कला है जिसमें सभी दोषों को दूर करके भवन निर्माण की सभी खूबियों का ध्यान रखते हुए निर्माण किया जाता है जिसमें रहने वाले के लिए सभी सुखों का अनुभव हो एवं आनंद की प्राप्ति होती हो तथा सम्पूर्ण विकास की प्राप्ति हो ऐसी कला को वास्तु शास्त्र कहते

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vaastushaastr mukhy saiddhaantik baaten

वास्तुशास्त्र मुख्य सैद्धांतिक बातें – वैदिक वास्तु शास्त्र – vaastushaastr mukhy saiddhaantik baaten – vedic vastu shastra

घर का मुख्य द्वार किसी अन्य के घर के मुख्य द्वार के ठीक सामने न बनाएं ! घर के आंगन में तुलसी का पौधा लगाएं और आंगन का कुछ भाग मिट्टी वाला भी रखें ! ईशान कोण किसी भी मकान का मुख कहलाता है ! अतः इस कोण को सदैव पवित्र रखना चाहिए ! रसोई

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vaastu shaastr ke kuchh mahatvapoorn niyam

वास्तु शास्त्र के कुछ महत्वपूर्ण नियम – वैदिक वास्तु शास्त्र – vaastu shaastr ke kuchh mahatvapoorn niyam – vedic vastu shastra

वास्तुशास्त्र मानव जाति के लिए एक बहुमूल्य उपहार है १ एक अच्छे वास्तुकार का कार्य आधुनिक सुख सुविधा से पूर्ण एक ऐसे भवन के निर्माण में अपना सहयोग देना है जो उसमें रहने वाले को सुख-समृधि दे सके, भवन की सरंचना में किसी तरह की क्षति पहुंचाए बिना भवन की सकारात्मक ऊर्जा को बढाकर इसमें

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vaastu- kaise karen dishaon ka shodhan

वास्तु- कैसे करें दिशाओं का शोधन – वैदिक वास्तु शास्त्र – vaastu- kaise karen dishaon ka shodhan – vedic vastu shastra

दिशाओं में देवी-देवताओं और स्वामी ग्रहों के आधिपत्य से संबंधित बहुत चर्चाएं की गई हैं! दिशाओं के देव व स्वामी होने से पृथ्वी पर किसी भूखंड पर निर्माण कार्य प्रारंभ करते समय यह विचार अवश्य कर लेना होगा कि भूखंड के किस भाग में किस उद्देश्य से गृह निर्माण कराया जा रहा है! यदि उस

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vastu shastra ke mool siddhant

वास्तुशास्त्र के मूल सिद्धांत – वास्तुशास्त्र – vastu shastra ke mool siddhant – vastu shastra

हमारे ऋषियों का सारगर्भित निष्कर्ष है, ‘यथा पिण्डे तथा ब्रह्माण्डे।’ जिन पंचमहाभूतों से पूर्ण ब्रह्मांड संरचित है उन्हीं तत्वों से हमारा शरीर निर्मित है और मनुष्य की पांचों इंद्रियां भी इन्हीं प्राकृतिक तत्वों से पूर्णतया प्रभावित हैं। आनंदमय, शांतिपूर्ण और स्वस्थ जीवन के लिए शारीरिक तत्वों का ब्रह्मांड और प्रकृति में व्याप्त पंचमहाभूतों से एक

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vaastu- kaise karen dishaon ka shodhan

वास्तु: कैसे करें दिशाओं का शोधन – वास्तुशास्त्र – vaastu: kaise karen dishaon ka shodhan – vastu shastra

दिशाओं में देवी-देवताओं और स्वामी ग्रहों के आधिपत्य से संबंधित बहुत चर्चाएं की गई हैं। दिशाओं के देव व स्वामी होने से पृथ्वी पर किसी भूखंड पर निर्माण कार्य प्रारंभ करते समय यह विचार अवश्य कर लेना होगा कि भूखंड के किस भाग में किस उद्देश्य से गृह निर्माण कराया जा रहा है। यदि उस

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vaastushastra ke ati mahatvpurn 3 siddhant

वास्तुशास्त्र के अतिमहत्वपूर्ण 3 सिद्धांत – वास्तुशास्त्र – vaastushastra ke ati mahatvpurn 3 siddhant – vastu shastra

कई वर्षों के सफल वास्तु परामर्श के अनुभवों के बाद मैंने पाया है कि दुनिया के किसी भी कोने में, जीवन के किसी भी क्षेत्र में, कोई सफल है तो उसका निवास स्थान या व्यावसायिक स्थल वास्तु अनुरूप अवश्य होता है। यदि वहां थोड़ा सा भी वास्तु दोष होता है तो उस वास्तु दोष से

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vastu shastra : vaidik kal kare

वास्तु शास्त्र : वैदिक काल कार्य – वास्तुशास्त्र – vastu shastra : vaidik kal kare – vastu shastra

प्राचीन काल में ब्रह्मा नेविश्व की सृष्टि से पूर्व वासतु की सृष्टि की तथा लोकपालों की कल्पना की। ब्रह्मा ने जो मानसी सृष्टि की उसे मूर्त रूप देने हेतु विश्वकर्मा ने अपने चारों मानस पुत्र जय, विजय, सिद्धार्थ व अपराजित को आदेशित करते हुए कहा कि ‘मैंने देवताओं के भवन इत्यादि (यथा इन्द्र की अमरावती)

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