ishan kon (jal sthan )mein kya ho

ईशान कोण (जल स्थान )में क्या हो, क्या न हो? – वैदिक वास्तु शास्त्र – ishan kon (jal sthan )mein kya ho, kya na ho? – vedic vastu shastra

वास्तु शास्त्र में ईशान कोण का वृहद् महत्व्य बताया गया है | यह वह स्थान है जिस पर गुरु ग्रह व्र्हस्पति का अधिपत्य है | साथ ही यहाँ वास्तु पुरुष का मस्तक भी है जिसे महादेव शिव का शीश होने की संज्ञा भी दी जाती है | शायद ऐसा इसलिए है क्यूंकि उत्तर और पूर्व दोनों ही शुभ उर्जा के विशेष महत्व्यपूर्ण स्रोत है | इसलिए इसका शुद्ध, साफ़ सुथरा होना आवश्यक है | यदि ईशान में दोष हो जाये तो उस घर के सभी सदस्यों का विकास अवरुद्ध हो जाता है, विवाह योग्य कन्या हो तो विवाह में बाधा आती है | सामाजिक अपयश, गंभीर रोग आदि घर कर जाते है | हर प्रकार की समृद्धि के लिए इस स्थान का जागृत होना बेहद अनिवार्य है | यदि ईशान कोण में मंदिर, साधना कक्ष, अध्यन कक्ष, भूगर्भ जल स्थान घर के अन्य स्थान से अधिक खुला स्थान नहीं है तो यह दोष है | वही अक्सर लोग यहाँ जैसे शौचालय, स्टोर आदि बना कर इस स्थान को दूषित, अपवित्र अनदेखा कर देते है | यह क्षेत्र जलकुंड, कुआं अथवा पेयजल के किसी अन्य स्रोत हेतु सर्वोत्तम स्थान है!

ईशान कोण (जल स्थान )में क्या हो, क्या न हो? – ishan kon (jal sthan )mein kya ho, kya na ho? – वैदिक वास्तु शास्त्र – vedic vastu shastra

 

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