pad vastu

पद वास्तु – वैदिक वास्तु शास्त्र – pad vastu – vedic vastu shastra

वास्तु पुरुष का आविर्भाव इतिहास में कब हुआ इसका समय ज्ञात नहीं है परन्तु वैदिक काल से ही यज्ञवेदी का निर्माण पूर्ण विधान के साथ किया जाता था! क्रमश: यहीं से विकास कार्य शुरू हुआ व एक पदीय वास्तु (जिसमें वास्तुखंड के और विभाजन न किए जाएं) जिसे सकल कहते हैं, पेचक मंडल जिसमें एक वर्ग के चार बराबर विभाजन किए जाएं, वर्ग को नौ बराबर भागों में विभाजित किया जाए! उसे पौठ, फिर 16,64,81,100 भाग वाले वास्तु खंड का विकास हुआ! इसी क्रम में यह निश्चय भी किया गया कि चतु:शष्टिपद वास्तु या एकशीतिपद वास्तु या शतपद वास्तु मं क्रमश: किन वणों में बसाया जाए! समर्स य सूत्रधार के अनुसार मुख्य रूप से 64, 81, 100 पद वाले वास्तु का अधिक प्रचलन हुआ! उक्त ग्रंथ के अनुसार चतुषष्टिपद वास्तु का प्रयोग राजशिविर ग्राम या नगर की स्थापना के समय करना चाहिए! एकशीतिपद वास्तु (81 पद) का प्रयोग ब्राह्मणादि वर्णों के घर, इत्यादि में करना चाहिए! शतपद वास्तु का प्रयोग स्थापति (आर्किटेक्ट) को महलों, देवमंदिरों व बड़े सभागार इत्यादि में करना चाहिए!

पद विभाजन की स्वीकृति 11वीं शताब्दी तक वृत वास्तु, जो कि राजप्रसादों हेतु प्रयुक्त की जाती थी, में भी दी गई है! वृत्त वास्तु में मुख्यत: चतुषष्टि वृत्त वास्तु, जो कि राजप्रसादों हेतु प्रयुक्त की जाती थी, में भी दी गई है! वृत्त वास्तु में मुख्यत: चतुषष्टि वृत्त वास्तु व शतपद वृत्त वास्तु प्रचलन में बने रहे! त्रिकोण, षटकोण, अष्टकोण, सौलहकोण वृत्तायत व अद्र्धचंद्राकार वास्तु में भी वृत्त वास्तु के समान पद विभाजन तथा तदनुसार ही वास्तु पुरुष स्थापन का प्रावधान रखा गया है!

पद वास्तु – pad vastu – वैदिक वास्तु शास्त्र – vedic vastu shastra

 

Tags: , , , , , , , , , , , , , , ,

Leave a Comment

Scroll to Top