प्राचीन काल में ब्रह्मा नेविश्व की सृष्टि से पूर्व वासतु की सृष्टि की तथा लोकपालों की कल्पना की! ब्रह्मा ने जो मानसी सृष्टि की उसे मूर्त रूप देने हेतु विश्वकर्मा ने अपने चारों मानस पुत्र जय, विजय, सिद्धार्थ व अपराजित को आदेशित करते हुए कहा कि ‘मैंने देवताओं के भवन इत्यादि (यथा इन्द्र की अमरावती) की स्थापना अब तक की है! अब वेन पुत्र पृथु के निवास हेतु राजधानी का निर्माण मैं स्वयं करूंगा! तुम लोग समस्त भूलोक का अध्ययन करो सामान्य जन की आवश्यकताओं के अनुरूप स्थापनाएं करो’ विश्वकर्मा के इस संवाद से उच्चकोटि का चिंतन योजना व प्रबंधन का संकेत मिलता है एक तरफ नगर निवेशन व दूसरी तरफ आंतरिक रचनाओं में वास्तु पुरुष के देवत्व का आरोपण करते हुए भौतिक सृष्टि में दार्शनिक सौन्दर्य की समष्टि करते हुए उससे चारों पुरुषार्थ की अभिष्ट सिद्धि की कामना की गई थी वृहत्संहिता के अनुसार जिस भांति किसी गृह में वास्तु पुरुष की कल्पना करते हुए कार्य किया जाता है, उसी भांति नगर व ग्रामों में ऐसे ही वास्तुदेवता स्थित होते हैं व उस नगर ग्रामादि में ब्रह्मादि वर्णों को क्रमानुसार बावें समराङ्गण सूत्रधार के पुर निवेश प्रकरय में वर्णों के आधार पर बसावट करने के विस्तृत निर्देश दिए हैं! अग्नि कोण में अग्नि कर्मी लोग, स्वर्णकार, लुहार इत्यादि को बसाना चाहिए, दक्षिण दिशा मे वैश्यों के सम्पन्न लोगों के, चक्रिको अर्थात् गाड़ी वाले नट या नर्तकों के घर स्थापित करने चाहिए! सौकारिक (सूकरोपनीकी), मेषीकार (गडरिया), बहेलिया, केवट व पुलिस इत्यादि को नैऋत्य कोण में बसाना चाहिए! रथों, शस्त्रों के बनाने वालों को पश्चिम दिशा में बसाना चाहिए! नौकरी व कलालों को वायव्य दिशा में बसाना चाहिए! सन्यासियों को, विद्वानों को, प्याऊ व धर्मशाला को उत्तर दिशा में बसाना चाहिए! ईशान में घी, फल वालों बसाना चाहिए! आग्नेय दिशा में वे बसें जो सेनापति, सामन्त या सत्ताधारी व्यक्ति हों! धनिक व व्यवसायी दक्षिण, कोषाध्यक्ष, महामार्ग, दंडनायक व शिल्पियों को पश्चिम दिशा में व उत्तर दिशा में पुरोहित, ज्योतिष लेखक व विद्वान बसें!
वैदिक काल वास्तु शास्त्र – vaidik kaal vaastu shaastr – वैदिक वास्तु शास्त्र – vedic vastu shastra