ज्योतिष शास्त्र में मंगल, शनि, राहु केतु को पाप ग्रहों की श्रेणी में रखा गया है और सूर्य को क्रूर ग्रह कहा जाता है। परंतु यहां यह अर्थ बिल्कुल भी नहीं है कि यह ग्रह शुभ फलों को प्रदान नहीं करते। अपितु हम इस तथ्य को बताने का प्रयास करना चाहेते हैं कि कुण्डली में कौन से भाव में बैठे यह पाप ग्रह कब शुभ फल प्रदान करने वाले बन जाते हैं। पाप ग्रह 3 6, 8 और 12वें भाव में बैठे होने पर शुभ फल प्रदान करने वाले माने जाते हैं।
दशा फल के लिए तृतीय, षष्ठम, अष्टम और द्वादश भाव अशुभ माने जाते हैं अत: इन स्थानों में बैठे अशुभ ग्रह शुभ फलों के देने वाले हो जाते हैं।
केन्द्र भाव को सुरक्षा स्थान कहा जाता है यह विष्णु स्थान है, इसलिए इनमें स्थित ग्रह प्राय: अशुभ व अनिष्ट फल नहीं देते और अशुभ तथा पाप ग्रह भी अनिष्ट नहीं कर पाते और वह शुभता देने वाले हो जाते हैं।
नैसर्गिक पाप ग्रह सूर्य, शनि, मंगल औत राहु-केतु यदि पाप भावों में स्थित हों तो अपनी दशा में प्रेम एवं सहयोग प्रदान करने वाले हो जाते हैं। रोग-ऋण का नाश तथा बाधा और कष्ट को समाप्त करके मान सम्मान में वृद्धि करने वाले बनते हैं।
इसी प्रकार पाप ग्रह दुष्त भाव के स्वामी कहीं भी स्थित होकर यदि शुभ ग्रहों से या शुभ भावों के स्वामीयों से युक्त या दृष्ट हों तो वह दुष्ट ग्रह भी अपनी दशा में रोग, दोष, पीडा़, भय से मुक्ति दिलाकर वैभव बढाने वाले होते हैं।
पाप ग्रह का दु:स्थान से संबंध होने या उसका स्वामीत्व होने पर दुख, दरिद्र व शत्रु का नाश करता है। दु:स्थान में स्थित पाप ग्रह यदि शुभ व योग कारक ग्रहों से युक्त या दृष्ट हों तो वह अपनी दशा अन्तर्दशा में रोग, शोक से मुक्ति दिलाकर स्वास्थ्य, सम्मान एवं सुख समृद्धि को प्रदान करते हैं। पाप ग्रह प्राय: दु:स्थान में स्थित होकर अनिष्ट व अशुभ का नाश करते हैं
शुभ ग्रह केन्द्र व त्रिकोण में सुभ फल देते हैं किंतु पाप ग्रह जिसमें कमजोर चंद्रमा, पापयुक्त बुध, सूर्य, शनि और मंगल केन्द्र के स्वामी होने पर अपना पाप फल नहीं दे पाते। यदि कोई पाप ग्रह केन्द्रेश एवं त्रिकोणाधीश भी हो तो उस स्थित में वह शुभ बन जाता है और ऎसा ग्रह अपनी दश अन्तर्दशा में स्वास्थ्य, सुख सम्मान की वृद्धि करता है।
यदि कुण्डली में तमोग्रह या राहु केतु केन्द्र भाव में स्थित होकर त्रिकोणाधिपति ग्रह से युक्त या दृष्ट हों अथवा त्रिकोण पंचम और नवम भाव में केन्द्रेश से युक्त दृष्ट होकर स्थित हों तो वह अपनी दशा में धन सम्मान एवं सुख की वृद्धि करते हें।