सतत प्राप्त होती रहें। चूंकि ब्रह्मांड में आकाशीय तत्वों का बाहुल्य है एवम् मानव मस्तिष्क का नियामक आकाश
ही है अतः सुख, संपदा, स्वास्थ्य और दीर्घायु के निमित्त वास्तु में ब्रह्म स्थान की महत्ता का प्रतिपादन वास्तु शास्त्र करता है।
पुराने समय में भगवान ब्रह्मा के निमित्त घर के बीच वाले स्थान में चैक या आंगन बनाया जाता था। ब्रह्म स्थान खुला रखने से घर
को वायु व प्रकाश भरपूर मिलता है और उस भवन में वास करने वाले सुखी, समृद्ध व स्वस्थ रहते हैं। स्वस्तिक मिटाता है वास्तुदोष शुभ
मांगलिक पर्वों के अवसर पर पूजा-घर, द्वार की चैखट और प्रवेश द्वार के आसपास अथवा घर की दीवारों पर प्राचीन समय से
ही स्वस्तिक चिह्न लगाने की प्रथा रही है। यह एक शुभ मंगल चिह्न है जिसे लगाने से सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि होती है। इसे
लगाने से आत्म संतुष्टि, शांति, एकाग्रता आदि की प्राप्ति और सदबुद्धि, प्रगति, पारिवारिक सौहार्द आदि में वृद्धि होती है।
साथ ही द्वेष भावना का शमन और कार्यक्षमता का विकास होता है। इस तरह स्वस्तिक शुभ होता है। हिंदू धर्म और संस्कृति में
रोली, हल्दी या सिंदूर से भी स्वस्तिक बनाने की प्रथा है। भवन के मुख्य द्वार की चैखट पर सोना, चांदी, तांबा अथवा पंचधातु से
निर्मित ‘स्वस्तिक’ की प्राण प्रतिष्ठा करवाकर लगाने से नकारात्मक ऊर्जा का नाश आरै सकारात्मक ऊर्जा का विकास
होने लगता है, घर की स्थिति अनुकूल होने लगती है। स्वस्तिक वास्तु दोष को दूर करता है। नौ अंगुल की लंबाई चैड़ाई
वाला स्वस्तिक स्थापित करने से शीघ्र शुभ प्रभाव देने वाला होता है। घर, दुकान, निजी कार्यालय आदि के प्रत्येक कमरे
की पूर्वी दीवार पर शुभ मुहूर्त में स्वस्तिक यंत्र की स्थापना करने से विभिन्न वास्तु दोषों का शमन हो जाता है।
वास्तुदेव का पूजन 1 – vaastudev ka poojan 1 – सम्पूर्ण वास्तु दोष – sampurna vastu dosh nivaran