सुख, शांति समृद्धि के लिए निर्माण के पूर्व वास्तुदेव का पूजन करना चाहिए एवं निर्माण के पश्चात् गृह-प्रवेशके शुभ अवसर पर वास्तु-शांति, होम इत्यादि किसी योग्य और अनुभवी ब्राह्मण, गुरु अथवा पुरोहित के द्वारा अवश्य करवाना चाहिए। लंबाई चैड़ाई को तीन भागों में विभक्तकिया जाए तो ऐसे भूखंड या भवन का मध्यवर्ती हिस्सा ब्रह्म स्थान कहलाता है। ब्रह्म स्थान धार्मिक दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण
होता है अतः इसे स्वच्छ रखा जाना चाहिए। ब्रह्म स्थान में तलघर, पाकशाला, पशुशाला, सेप्टिक टैंक, शौचालय, शयन कक्ष,
स्नान गृह, स्वीमिंग पूल, स्टोर रूम, कुआं, बोरिंग, वाटर-टैंक आदि नहीं बनाने चाहिए। ब्रह्म स्थान में सफेद रंग शुभ होता है।
नवरत्नों में माणिक्य का, पंचदशी यंत्र में पंचांक का और नवग्रह यंत्र में सूर्य का जो स्थान है वही स्थान मकान के ब्रह्म स्थान
का स्थान है। यदि भवन निर्माण की जगह को नौ बराबर-बराबर वर्गों में विभाजित किया जाए तो पांचवंे वर्ग वाली जगह ब्रह्म
स्थान की जगह होगी। इसे छोड़कर शेष आठ वर्गों की जगह पर पांच तत्वों के अनुरूप निर्माण करना चाहिए। यदि चीनी वास्तु
फेंगशुई के चमत्कारी कहे जाने वाले ‘लो- शु’ वर्ग पर ध्यान दें तो हम पाएंगे कि उसका केंद्रीय पंचम वर्ग ‘सेहत’ का होता है। इसे
भारतीय वास्तु के ब्रह्म स्थान का रहस्य माना जा सकता है। ब्रह्म स्थान आकाश तत्व वiला मना जाता है।
इसको खुला रखना इसलिए जरूरी है कि भवन में रहने वालों को आकाश की ओर से आने वाली नैसर्गिक ऊर्जाएं
वास्तुदेव का पूजन – vaastudev ka poojan – सम्पूर्ण वास्तु दोष – sampurna vastu dosh nivaran